Biography, Literature and Literary studies

About the book:
किसी ने बताया नहीं था, पर बचपन में ही यह जान लिया था कि कविताओं में प्रेम का और प्रेम में कविताओं का बड़ा महत्व है.







About the book:
यह एक कविताओं का संग्रह है, इस किताब में मैंने बहुत सारे कविताओं को एक जगह इकट्ठा किया है। इस किताब में विभिन्न तरह के कविताओं को समाहित किया गया है और यह कविता अनेक बिंदुओं पर आधारित हैं। इस कविता के संग्रह की खासियत यह है कि यह सभी श्रोताओं को और सभी पाठकों को पसंद आएंगी क्योंकि इस कविताओं का जो कंटेंट है वह सभी बच्चों से लेकर बूढ़े तक यानी सभी सामान्य लोग भी आसानी से अपने शब्दों में इसे पढ़ सकते हैं। इस कविता के संग्रह में शब्दों की सरलता को देखते हुए बहुत ही सामान्य शब्दों का उपयोग किया गया है। यह कविता का संग्रह समाज के हर एक वर्ग पर आधारित है, इस कविता में समाज के हर एक बिंदुओं पर चर्चा की गई हैं। इस कविता की खास बात यह है कि यह किसी एक केंद्र बिंदु पर आधारित नहीं हैं बल्कि समाज के हर एक केंद्र बिंदु को समाहित की है।



About the book:
" বাঁধনহারা ঢেউ " জীবন বোধের কবিতা
নিজের অন্তর্নিহিত ভাব প্রকাশের নানা মাধ্যম থাকে। নাচ, গান, অভিনয়, সাহিত্য বিবিধ। কবি রাফিয়া সুলতানা নিজের পরিচিতি ঘটানোর মাধ্যম হিসাবে কবিতাকে গ্রহণ করেছেন। সাহিত্যের অঙ্গনে কবিতাকে আলাদা মাত্রা দেওয়া হয়। কবিতার বাইরে গল্পেও হাত দিয়েছেন এবং তা বই আকারে প্রকাশও হয়েছে ইতিমধ্যে। দীর্ঘ জীবনের অভিজ্ঞতায় সমৃদ্ধ হয়েই তাঁর এই পথ চলা।কর্মজীবন শিক্ষকতায় কাটিয়ে সাহিত্যজীবনে প্রবেশ… তাই বলা যায় জমে থাকা লেখাগুলোকে গ্রন্থাকারে গ্রথিত করছেন। এমন ভাবনা কম মানুষের মধ্যেই দেখা যায়।
রাফিয়া জীবনকে দীর্ঘদিন দেখেছেন। মনজগতের ভাবনাকে বিকশিত হতে দেখেছেন। এই ভাবনাগুলো যেন " বাঁধনহারা ঢেউ " - এর মত উচ্ছ্বাসে উচ্ছলিত হয়ে ফুটে বেরিয়েছে তাঁর কবিতার মধ্যে দিয়ে। তাই এই গ্রন্থ পাঠকের মনে যায়গা পাবে আশা রাখি।
নরেশ মণ্ডল কবি কথা সাহিত্যিক সাংবাদিক

About the book:
यह पुस्तक हमारे देश और विश्व में चल रहे विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर लिखी गई एक काव्य-संग्रह है। पुस्तक में 60 कविताएं संकलित हैं। पुस्तक में लिखी गई कविताएं देश में चल रहे वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को उजागर करती हैं। इस पुस्तक के द्वारा देश में चल रही समस्याओं जैसे बेरोजगारी, मूल्य वृद्धि, कोरोना संकट, राजनीतिक तनाव, सीमा विवाद और किसान आंदोलन जैसे मुद्दों को उठाया गया है.

About the book:
उल जुलूल बात करने की आदत नहीं हमे तो सीधा आपके दिल पे चलते है खोल देते है दिल क सरे दरवाजे और और बेनकाब कर देते है मोहब्बत को। इतने चेहले लगाए आखिर क्यों फिरती है ये मोहब्बत कुछ तो ख्याल किया होता इस बेजुबान दिल का जो खून से लतफत धड़कना भी छोड़ दिया इस आस में की वो रात आएगी बरसात में। इस कलश संग्रह में दो कवियों की सामूहिक रचनाओं को शामिल किया गया है जो आपके दिलो के हाल से लेकर रुहों से भी सवाल करेंगे। भूल के वो सारी कश्मकश दिल क दरम्यान छिपे ख़ामोशी को भी हासायेंगे। तो डालिये एक झलक इस तोहफा के अंदर और ढूंढ़ लीजिये अपना सारा हथियार जो आपके दिल को सुकून देता हो। प्यार को परिभाषित करने की बहुतो ने कोशिश की लेकिन इस मोहब्बत को कोई किसी तरह की जंजीर से बांध ही नहीं सकता। विस्वास नहीं होता न, तो एक बार लालच त्याग करके प्यार कीजिये बाकि विपिन और सत्येंद्र तरफ से मोहब्बत मुबारक हो

काव्य उन्मुक्त होता है, यह स्वच्छंद होकर विचरण करता है और जब हम इसे पढते है, तो हृदय पर एक अमिट छाप छोर जाता है। हमारे उद्विग्न हृदय को शीतलता का एहसास होता है। हमें आभास होता है कि जीवन को हम जितना कड़वा समझते है,उतना होता नहीं है। जब हम असह वेदना को अनुभव करते है, तब कविताएँ पढने से हृदय को शांति की अनुभूति होती है। जब हम समझते है कि जीवन की समस्याएँ खतम होने का नाम नहीं ले रही, तब कविता के माध्यम से नया विश्वास करवट लेता है। हमें फिर से नई चेतना का अनुभव करवाता है, नई ऊर्जाओं का संचार करता है। जीवन के प्रति हमारी रोचकता को बढाता है। कविता एक ऐसी प्रवाह है, जिससे हम अपने आप को अच्छुन्न नहीं रख पाते। कविताएँ लिखने का उद्देश्य भी यही होता है कि यह जन मानस के हृदय में उतर जाए, उसे नैसर्गिक आनंद की अनुभूति करवाए।

इंद्रधनुष नामक प्रस्तुत पुस्तक चोका विधा में रची गयी कविताओं का संग्रह है । चोका विधा हाइकु के समान ही एक जापानी विधा है जिसमें रचनाकार अपनी हृदयगत भावनाओं का अंकन करता है । चोका पाँच सात पाँच सात वर्णों वाली पंक्तियों की रचना है जो कम से कम नौ तथा अधिक से अधिक असंख्य पंक्तियों की रचना है । 'इंद्रधनुष' में कवियित्री डॉ.






सन 2018 में मेरी एक पुस्तक आयी थी जिसका शीर्षक था 'सच्चाई कुछ पन्नो में' जिसमे मनुष्य जीवन के नौ रसो की 27 छोटी छोटी सच्ची कहानियाँ थी। हर एक रस की तीन कहानियाँ। मेरे कई मित्रो को वो पुस्तक और वो संकल्पना बहुत पसंद आयी थी एवं मेरे कई साथियो ने मेरे से अनुरोद्ध किया की मैं उस पुस्तक का द्वतीय भाग भी लिखूँ। मित्रो आप मेरी इस पुस्तक 'चाय कुल्हड़ में' को 'सच्चाई कुछ पन्नो में' का द्वतीय भाग भी कह सकते हैं और चाहे तो बिना किसी सन्दर्भ के स्वछंद भी पढ़ सकते है। मैंने इस पुस्तक में सामान्य बोल चाल की हिंदी प्रयोग की है जिससे सब आसानी से कहानियों के भावो को समझ सके जहाँ पर कोई वार्तालाप है वहाँ मैने उसे उसी तरह लिखा है जैसे वो हुआ था हिंदी और अंग्रजी दोनों मे ।


इस किताब की रचना इश्क़ की कुछ बुनयादी मसाइल से प्रेरित हो कर की गयी है। इस किताब को लिखने से पहले मैंने सोचा कि इसमें ऐसी क्या ख़ास बात होनी चाहिये जो पढ़ने वाले के मन पर एक गहरी छाप छोड़ जाए। नई दुनिया के नए लहजे को मैं बखूबी समझती हूँ और मुझे उर्दू के लफ़्ज़ों की लज़्ज़त का अंदाज़ा भी है। ये वो सिलसिला है जो दो दिलों को जज़्बात-ए-हक़ के धागे में पिरोता है। इस किताब का हर्फ़ हर्फ़ मेरी और मेरे साथी शायर की ज़िन्दगी के उन एहसासात से जुड़ा है जो हमने इस जिस्म की कोठरी में गुज़ारी है।
इस किताब को लिखने का मक़सद महज़ इतना था कि जो बातें ज़ुबाँ पे आते आते रह गईं उन बातों को हर्फ़ हर्फ़ ढाल कर उर्दू के ज़ायके के साथ इस किताब 'सिलसिला' के जरिये आप तक पहुँचाना है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको इस किताब को पढ़ कर यूँ लगेगा कि ये आपके खुद की बयान-ए-जीस्त है। हम उम्मीद करते हैं कि ये सिलसिला आप सबको बेहद पसंद आएगा।





जीवन के अनेकों पहलुओं को संजोये रखने की एक छोटी सी कोशिश। 'सदा-ए-असद' किस्सा बयां करती है हमारी पहचान और हमारे समाज के बदलते चरित्र का। दिलों का दिलों से रूठना और कई पड़ावों पर जीवन में उथल-पुथल को एक छोटी सी किताब में नात, नज़्म और ग़ज़लों के माध्यम से लोगों तक पहुंचने की एक छोटी सी कोशिश की गयी है। एक-एक कविता को समय के एक-एक लिफाफे की तरह पेश किया गया है। उम्मीद है सुख़न की चाहत रखने वाले मेरे दोस्तों को यह कोशिश पसन्द आएगी और मेरे सम्पूर्ण विश्व की जनता जनार्दन इस कोशिश को कामयाब करेगी।
धन्यवाद

लेखक बचपन में हर साल गर्मी की छुट्टियों में, छठ पर्व में या किसी अन्य मौके पर गाँव जाया करते थे। नौकरी के व्यस्त जीवन ने उन्हें गाँव से दूर कर दिया। इस पुस्तक में लेखक अपने बचपन में गाँव में बिताए पलों को याद करते है। वे हसीन पल जो उन्होनें रिश्तेदारों, दोस्तों, और गाँववालों के साथ बिताए। वे प्रकृति प्रेमी भी हैं, इस पुस्तक में कई जगह इसकी झलक मिलती है। वो पर्व-त्योहार खुल कर मनाते हुए नज़र आते हैं। उन्होनें अनेकों अनुभव का जिक्र किया है जो गाँव में ही मुमकिन हो सकता है। लेखक ने इस बात का भी उल्लेख किया है कि आने वाले समय में क्यूँ लोग गाँव में ही रहना पसंद करेंगें और गाँव में क्या-क्या संभावनाएँ है?



About the book:
"কেয়াফুলের মঞ্জরী"
আমার মা আখতারুম মণিরের জন্ম একটি সম্ভ্রান্ত ও সুশিক্ষিত মুসলিম জমিদার তথা তালুকদার বংশে। তাঁর মাতৃকুলের পুরুষ সদস্যগণও ছিলেন তদনিন্তন ব্রিটিশ সরকার ও বর্ধমানের তৎকালীন রাজপরিবারের উচ্চপদস্থ রাজকর্মচারী।
আমার মায়ের দুটি ডাক নাম ছিলো কেয়া ও কেকা। "কেয়াফুলের মঞ্জরী" তাঁরই দীর্ঘ অষ্টাদশ বছরের ঘটনাবহুল জীবনের বিক্ষিপ্ত কিছু ছোট ছোট ঘটনার স্মৃতিচারণ। প্রাকস্বাধীনতা আমলের কিছু ছড়ানো ছিটানো ইতিহাস। এবং সর্বোপরি তাঁর রোগ জর্জরিত, অশক্ত শরীরের মধ্যে বাসা বেঁধে থাকা অজীর্ণ ও অমলিন একটি মননের অবসর কালীন কিছু প্রলাপ,বিলাপ ও আনন্দোচ্ছ্বাসের বহিঃপ্রকাশ বা প্রতিলিপি ।
বিশেষ করে, বিভিন্ন সময়ে মায়ের কাছে শোনা গল্পগুলো ও মায়ের আদি বংশধরদের ইতিহাস … সর্বোপরি আমাদের পরবর্তী প্রজন্মের কাছে এটা একটি মূল্যবান নথী ও চরম গৌরবের একটি বস্তু বা অন্যতম গৌরবময় ঐতিহাসিক একটি দলিল… রাফিয়া সুলতানা



About the book:
"তবুও হেঁটে চলা " সাহিত্যের সাগর মাঝে একদমই নতুন মাঝি,তবুও ছোট্ট ডিঙি নিয়েই চলতে শুরু করেছি জীবনের মাঝপথে এসে।স্কুল জীবনের লেখারা স্কুলের ম্যাগাজিনেই আজও বন্দী। তার পর কেটে গেছে অনেক গুলো বছর,এলো ২০২০ সালের ২৩সে মার্চ,পেলাম কর্মহীন অবসর,সময় কাটাবার জন্য লিখতে শুরু করলাম খাতার পাতায়,
তারপর পরিচয় হল কিছু সাহিত্য গ্রুপের সাথে,সেইখান থেকে উৎসাহিত হয়ে, এখনও লেখা চলছে কাজের ফাঁকে ফাঁকে।
"স্বচরিত বাংলা কবিতা" সাহিত্যের সম্পাদক গোপাল পাত্র মহাশয়ের আন্তরিকতা এবং ভালোসায় প্রকাশিত হলো "তবুও হেঁটে চলা"।
জীবনের ঘাত প্রতিঘাত যতই আসুক তবু্ও আমরা হেঁটে চলি ধীরে ধীরে মৃত্যুর দিকে।
এ-ই চলার থামানোর সাধ্য নেই কারর।পথ চলতে চলতে " তবুও হেঁটে চলা "আমি আশাবাদী পাঠক বন্ধুদের ভালো লাগবে,যদি ভালো লাগে,তবেই হবে পথ চলার সার্থকতা।




About the book:
স্বপ্নতরী
পেন্সিল প্রকাশনা সংস্থার আপ্রাণ প্রয়াসে আমার মত এক ক্ষুদ্র নাম গোত্রহীন আগাছার পরিচয় বনস্পতিদের সমাজে পরিচয় পাবে তা আমার স্বপ্নে বা কল্পনা কল্পনার অতীত…
আমার এই ক্ষুদ্র প্রয়াসকে উৎসাহ ও প্রেরণা জ্ঞাপন করে সুদীর্ঘ বন্ধুর পথকে হয়ত কিছুটা মসৃন হবে !

About the book:
" আমার প্রতিবাদের ভাষা "
কলম যে তলোয়ারের চেয়ে ধারালো তা পরখ করতে… " আমার প্রতিবাদের ভাষা আমার প্রতিরোধের আগুন দ্বিগুণ জ্বলে যেন দ্বিগুন দারুণ প্রতিশোধে করে চূর্ণ ছিন্ন -ভিন্ন শত ষড়যন্ত্রের জাল যেন আনে মুক্তি আলো আনে আনে লক্ষ শত প্রাণে। " শ্রদ্ধেয় সলিল চৌধুরী মহাশয়ের উপরুক্ত উদ্ধৃতিটি কেন্দ্র করে " স্বরচিত বাংলা কবিতার " পক্ষ থেকে "আমার প্রতিবাদের ভাষা "এই শিরোনামে কবি/লেখকের কাছ লেখা আহ্বান করা হয়েছিল … কবি/ লেখকগণ তাদের নিজেদের মতো করে এই প্রতিবাদ মিছিলে শামিল হয়েছেন … এই সংকলনে এপার ওপার বাংলার অর্থাৎ ভারত-বাংলাদেশের ৪১ জন কবি লেখকের ১/২ টি প্রতিবাদ মূলক লেখা নির্বাচন করে যৌথ একটি সংকলন প্রকাশিত করা হলো… সমস্ত পাঠক/পাঠিকাদের প্রতি বিশেষ অনুরোধ এই অনন্য সংকলনটি পড়ুন নিজের মধ্যে ঘুমিয়ে থাকা প্রতিবাদী মানুষটাকে অবশ্যই খুঁজে পাবেন - এ কথা বলতেই পারি…

শারদ- ২০২১
মা আসছেন তাই শরতের অন্তঃসলিলা ফল্গুধারা অনুভব করে মেতে উঠি আমরা .








