Biography, Literature and Literary studies


measures of success for the fashionable set who watched themselves
being represented on the Restoration stage.






About the book:
ಪ್ರಸ್ತುತ ಪುಸ್ತಕವು ಲೇಖಕರ ಆರನೇ ರಚನೆಯಾಗಿದ್ದು, ಈ ಪುಸ್ತಕದಲ್ಲಿ ಲೇಖಕರು ಬರೆದ ಎಲ್ಲಾ ಕವಿತೆಗಳ ಸಂಗ್ರಹವಿದೆ.

About the book:
उस्ताद उफुक़ बरारी की शायरी की तारीफ करना सूरज को चराग़ दिखाने जैसा है। उनका पहला शेरी मजमुआ उर्दू में "बाम ए उफुक़" के नाम से छप चुका है। इस ग़ज़ल संग्रह में जिसका नाम "कलाम ए उफुक़ बरारी" है जिस में ऐसी ही ग़ज़लों का इंतेखाब किया गया है जो आम फहम हों और इन ग़ज़लों से ऐसे ही अशआर चूने गये हैं जो आसानी से समझ में आ जाएं। मैंने ये ग़ज़ल संग्रह तरतीब देकर अपने उस्ताद का हक़ अदा करने की नाकाम कोशिश की है। मुझे उम्मीद है के इस का एक-एक शेर सुनने वालों को सर धुन्ने पर मजबूर कर देगा। बस उफुक़ बरारी साहब के दो अशआर पर उफुक़ साहब की बात पूरी करता हूं, 'बुलाया प्यार से लेकिन कोई नहीं आया खुदा को हो गए प्यारे तो फिर सभी आए।' 'पढ़ेगा कौन हमें देखना पसंद नहीं, के जाहिलों में रहें हम किताब हो कर भी।'
आप का डॉ रिज़वान कश्फ़ी











About the book:
अज़ल का मतलब है जब समय की रचना हुई, इसके दो मतलब है, एक है एब्सोल्यूट मीनिंग जब वाकई में समय का आरंभ हुआ पर दूसरा है सापेक्ष जब किसी भी व्यक्ति के जीवन में समय की व्युद्पत्ति होती है।
समय आपको यादें प्रदान करता है। इन्ही यादों का साझा रूप है यह कविता की किताब। इसमें आपको अनेक भावनाएं मिलेंगी। मैने हमेसा लिखा है जब कोई बात या एहसास मुझे छू गया हो।
इन कविताओं में मात्र ऑब्जेक्टिवी खोजना उतना ही गलत होगा जितना कोई इंसान अपनी यादों से दूर होने का दावा करता है।
मैने समझा है जीवन को लगता है अब जीने की बारी है।
शायद यह किताब आपको किन्ही अनजान सफर पर ले जाए।
और मुझे मेरी मंजिल के और करीब।
कई कविताओं की उत्पत्ति होती है आंतरिक कलह से और कई होती है दर्पण समाज का। मेरी कविताएं शायद दोनो का मिश्रण है।
जो प्रेरित है सादेक हेदयात और दोस्तोयकी जैसे महान लेखकों से। मेरे पसंदीदा कवि है आधुनिक कविता के जनक मुक्तिबोध।






About the book:
"বাতাস ছুঁয়ে গেলো" আজ ডিজিটাল , ইলেকট্রনিকস এর যুগে আমরা সকলে কাছে বসে সব কিছু পেতে চাই, রিমোট হাতে থাকবে - টিভি, এসি,ফ্যান চলবে, কাছে যাব না। মজাই আলাদা,এমনকি আমাজন, ফ্লিপকার্ট সবকিছু নিয়ে কাছে আসবে - ব্যাংকে যাবার দরকার ই নেই - ফোন পে ,এমাজান পে ,ভিম অ্যাপ আরো কত কিছুই তো ঘরে বসে হয়ে যায়।কোনো লেখা আর কষ্ট করে পড়তে ইচ্ছা করেনা তবু মনের ভাষা,মনের ব্যথা, অভাবী অসহায় মানুষের করুণ চাপা কান্না, প্রতিবাদী যুবকের নির্বাক যন্ত্রনা, শাসকের চাপে - মানুষ কোণঠাসা আজও অহরহ আলিতে গলিতে।কলমের আঁচড়ে কাগজের বুকে লিপিবদ্ধ করবার বাসনা তো থেকেই যায় , সেই সাম্প্রদায়িকতা ,শ্রেণী বৈষম্য কুরে কুরে খায় কিছু মানুষ কে ।যদি ওই ব্যাস্ত মানুষেরা এক বিন্দু মনোনিবেশ করেন, আজকালকার নবীন লেখকের রক্তক্ষরণ প্রাণোচ্ছ্বল কৃতিত্ব কোনো অংশে কম যায় না। বড়ো কথা সাহিত্যের প্রতি বাঙালির হৃদয়ে উদাসিনতা আসেনি। ভারতবর্ষের ইতিহাসে অন্য কোনো ভাষা-ভাষীর চেয়ে বাংলা ভাষায় সাহিত্য রচনা এবং সাহিত্যের প্রতি বাঙালির যে ওতপ্রোত টান এক বড়ো উপলব্ধি। নতুন, পুরানো সকল লেখাকেই আমরা সাদরে গ্রহণ করেছি। কমবেশি সময়ের অভাবে নতুন পাঠক বন্ধুরা কাঁচা হাতের লেখকদের বই পাঠের তেমন আগ্রহ দেখা যাচ্ছে না। আশা করি আমার প্রথম কাব্যগ্রন্থ "বাতাস ছুঁয়ে গেলো" বইটি সকল পাঠক বন্ধুদের মনের খোরাক জোগাতে পারবে। কবিতার মধ্যে দিয়ে আজকালকার দৈনন্দিন জীবনের পৃষ্ঠ ভুমিকে তুলে ধরা হয়েছে, সাথে সাথে বিভিন্ন ধরনের বিশ্লেষণাত্মক কবিতার সমাহার পাওয়া যাবে। আমি মনে করি পাঠক বন্ধুরা ই ভালো মন্দের সমালোচক । এর সমস্ত গুণ বিচার পাঠক বন্ধুদের উপর।







ছায়াছবি সমাজ ভাবনার সহজ শব্দমালা রাফিয়া সুলতানার এটি চতুর্থ কাব্যগ্রন্থ। এর আগে কবিতা ছাড়া গল্প সংকলনও বের হয়েছে। তাঁর গল্প এবং কবিতা পড়ার এর আগেও সুযোগ হয়েছে। এবার কবি সেই সুযোগ আরও একধাপ বাড়িয়ে দিলেন।
দীর্ঘ বছর সাহিত্যজগতের গায়ে লেগে থাকা হেতু নানা ধরনের লেখা পড়া এবং শোনার সুযোগ আমার পক্ষে হওয়া স্বাভাবিক।
এ প্রসঙ্গে কবির অন্য একটি কাব্যগ্রন্থের একটি কবিতার লাইন মনে পড়ছে।'বারান্দাতে সময় কাটে’ কবিতায় দীঘির কালো জলে/থেকে থেকে পানকৌড়ি/ ডুবকি দেবার ছলে/ধরছে বুঝি মাছেরপোনা/স্বকীয় কৌশলে। ‘স্বকীয় কৌশলে’ শব্দ ব্যবহার করেন কবিতায়। আছে প্রকৃতির সঙ্গে পাখি জল গাছপালা নিয়ে অবসর সময় কাল। কবি রাফিয়া সুলতানা যে কতটা সমাজমনস্ক তাঁর নানা কবিতার মধ্য দিয়ে পাঠকদের দরবারে তা তুলে ধরেছেন। তাঁর আরও কবিতা পড়ার আগ্রহ জাগিয়ে রাখলেন কবি। নরেশ মণ্ডল কবি, কথা সাহিত্যিক, সাংবাদিক

কবিতায় হারানো সুর
এটি কবি রাফিয়া সুলতানার তৃতীয় কবিতার বই।শত কবিতা বিকশিত হয়েছে কবি মনে নানা ভাবভাবনার প্রতিফলন হিসাবে। একটা ধারণা থাকে কবি সম্পর্কে। তারা প্রকৃতিপ্রেমী।অগোছালো।উদাসীন জীবন ভাবনায়।
এই ধারণাটা একটা সময়ে সাধারণ মানুষের মনে ছিলো।অবশ্যই এ ধারণা এখন সময়ের সঙ্গে পাল্টে গেছে।প্রকৃতিকে কে না ভালোবাসে।পাহাড়,নদী,সমুদ্র, বন,পাখপাখালি। বাসস্থানের অবস্থান এবং জীবনযাপনের প্রভাব তো লেখক- কবিদের লেখনিতে ধরা পড়ে।
রাফিয়া সুলতানা কবিতা লেখায় পুরানো সাধু শব্দ ব্যবহারে সাচ্ছন্দ্য বোধ করেন।আসলে যে শব্দমালা নেড়েচেড়ে বড় হয়ে ওঠা,সেটাই ব্যবহারে সহজাত হয়ে উঠেছেন।'
শিল্পী যেমন ক্যানভাসে রঙের ছোঁয়ায় ফুটিয়ে তোলেন তাঁর ভাবনা,তেমনি কবিও শব্দের মালা গেঁথে সাজিয়ে তোলেন মনের ভাবনাকে।ভালো লাগবে ছোট বড় সকলের এটাই আশা। নরেশ মন্ডল,

" হাতে খড়ি "
সেই আদি কাব্যিক কাল অর্থাৎ বাল্মিকী মুনির আমল থেকেই নারী-পুরুষ (লেখক/ কবি গন ) নির্বিশেষে সকলে কিছু না কিছু প্রাকৃতিক সৌন্দর্য অথবা বাস্তবে ঘটে যাওয়া কিছু মুহূর্ত থেকে অথবা কখনো প্রেমে পড়ে কারো চোখ কারো ঠোঁট কারো চরিত্র গঠন দেখে প্রথম সৃজন মানে কলমের আঁচড়ে সাদা পাতায় অথবা মনের জমিতে লেখার বীজ অঙ্কুরিত হয়েছে …
উদাহরণ স্বরূপ আদি কবি বাল্মিকী মুনির প্রথম শ্লোক " মা নিষাদ প্রতিষ্ঠাং ত্বমগমঃ শাশ্বতীঃ সমাঃ। যৎ ক্রৌঞ্চমিথুনাদেকমবধীঃ কামমোহিতম্।"
তেমনি ভাবে " হাতে খড়ি " নামক যৌথ সংকলনটিতে ৩০ জন কবি/ লেখকের প্রথম লেখা কবিতা/গল্প কিংবা প্রবন্ধ স্থান পেয়েছে - এবং গ্রন্থটিতে লেখা গুলি সময়ের ক্রমন্বয়ে সাজানো হয়েছে !



About the book:
महिलाओं को अक्सर कोमल, संवेदनशील, भावनात्मक और कमजोर दिल के रूप में लेबल किया जाता है। जबकि महिलाएं अपनी भावनाओं के साथ दुनिया पर शासन कर सकती हैं, उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाता है। यह पुस्तक महिलाओं को घेरने वाली बाधाओं को तोड़ने की एक पहल है और कवयित्री सभी पाठकों को लैंगिक पूर्वाग्रहों को पहचानने और महिलाओं को महत्व देने के लिए प्रोत्साहित करती है। आखिरकार, महिलाएं जो अपनी भावनाओं को नियंत्रित करती हैं, अपनी भावनाओं को नियंत्रित करती हैं, अपनी ऊर्जा को सकारात्मक चीजों में लगाती हैं और अपने दिल की सुनती हैं, वे सबसे खुश हैं।
क्या आप सहमत हैं?

प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न विषयों को आधार बना कर कवयित्री द्वारा हाइकु विधा में लघु कविताओं का सृजन किया गया है । हाइकु जापानी काव्य विधा है । इसमें कुल सत्रह वर्ण ही होते हैं । ये कुल तीन पंक्तियों में लिखी जाने वाली लघु आकार की रचनाएं होती हैं । प्रथम पंक्ति में पाँच वर्ण होते हैं । द्वितीय पंक्ति में सात वर्ण तथा अंतिम तृतीय पंक्ति में पुनः पाँच वर्ण होते हैं । इनमें मात्राओं तथा संयुक्ताक्षरों की गणना नहीं की जाती । इन लघु कलेवर की रचनाओं को बहुत कुछ भारतीय काव्य विधा क्षणिका के समकक्ष माना जा सकता है । तो आइये । आनन्द लीजिये इन हाइकु रचनाओं का ।


हर किसी कि ज़िन्दगी में प्यार का अहम किरदार होते है किसी की ज़िन्दगी में ये किरदार अच्छे होते है तो किसी के खराब पर फिर प्यार किसी ना किसी मायने में जुड़ा रहता है हम सब से। कोई प्यार जता देता है तो कोई बता देता और कुछ अपने दिल में हि इसे छुपा के रखता है, कभी दोस्ती टूट जाने के डर से तो कभी इश्क़ मुकम्मल ना होने के डर में सहमा रहता है बस ये नादान दिल है जो नादानियां करता रहता है और सारे दुःख दर्द को जानते हुए भी ये इश्क़ करता रहता है। किसी कि दिल की बात तो किसी के जुबां की बात इन शब्दों के जाल से कविताओं में पिरोई है, किसी के दिल के हालातो को तो किसी के अज़ीज़ से जुड़े प्यार के रिश्तों की अहमियत को संझोई है। प्यार की कोई सीमाएं नहीं है पर कुछ हिस्से को इस पुस्तक में बयां करने की इक चोटी कोशिश की है।

About the book:
অনুভূতির প্রবাহ
আমরা সবাই জানি যে মনের ভাব অন্যকে বলে কিংবা লিখে বুঝানোর ক্ষমতা একমাত্র মানব জাতিরই আছে। যে যেভাবেই হোক প্রতিদিন আমরা তো এই বিশেষ কাজটিই অনবরত করে যাচ্ছি।
আমি যখন চতুর্থ শ্রেণীর ছাত্রী ছিলাম তখন থেকেই কবিতার প্রতি বিশেষ ভাবে আকৃষ্ট হই। কবিতা ভরা গাঙ্গে বাণ ডাকার মতো আমাকে উৎসাহ উদ্দীপনা জোগায়। বলতে গেলে চতুর্থ শ্রেণীতেই আমার কবিতাতে হাতে খড়ি আমার কবিতায় তাই আছে যেমন সুখের কবিতা,তেমনই দুঃখেরও।
প্রকৃতির মতোই কবিতার মাধ্যমে ব্যাক্তিগত ও সমষ্টিগত জীবনের ভাঙা গড়ার ছবি আঁকতে চেয়েছি।
আমি আমার আনন্দ সুধী সহৃদয় পাঠক - পাঠিকাদের সঙ্গে ভাগ করে নিতে চাইছি। পাঠক পাঠিকাদের প্রতি রইলো আমার অকুণ্ঠ শ্রদ্ধা ও ভালোবাসা।
ধন্যবাদ ও শুভেচ্ছান্তে আরতি চৌধুরী


About the book:
इस पुस्तक में सुश्री रंजना वर्मा जी ने अपनी ग़ज़लों के माध्यम से जीवन की सच्ची अनुभूतियों और वास्तविक तथ्यों को व्यक्त करने का प्रयास किया है। वास्तव में आज मनुष्य का खोता हुआ अस्तित्व, भूख, बेरोज़गारी, हिंसा और इन सब के फलस्वरूप उपजने वाले दर्द और पीड़ा के साथ सभी परिस्थितियों में धैर्य, साहस और सहनशीलता आदि से सामंजस्य स्थापित करने का जो प्रयास किया जाना चाहिये उस की अभिव्यक्ति रंजना जी की ग़ज़लों में है। कहते हैं कि उम्र के साथ ही अनुभव भी बढ़ता जाता है और रचनाओं में ऐसी परिपक्वता होती है कि जिस से आने वाली पीढ़ियों को भी सीखने का सबक मिलता है । और तब रंजना जी की क़लम उठती है और ये सीख देती है ।





